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Rangotsav

मन की गाँठें खोल

घोल अब रँग में रंग हजार


दिन बदले हैं, अमृत-

आ लगा है पतझर के होंठ

मौसम ने ज्यों खींची कोई

बहुत पुरानी चोट


वन-वन उतरी गंध

गंध की क्वांरी हर बौछार


टूट रहा सब कुछ कहने को

बहुत दिनों का मौन

वृक्ष-वृक्ष में होड़ लगी

बौराए पहले कौन


मधुवन गाए, नाचे लय में

छिड़के रंग बहार


ओ रे काल, पलट कर देखे

अपने ही अधिवास

कोई क्षण खिड़की खोले है

भर-भर आँख पलाश


धरती, अम्बर भींजे,

भींजे वासंती उदगार

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