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! style="padding:2px;" | <h2 id="mp-tfa-h2" style="margin:3px; background:#cef2e0; font-size:120%; font-weight:bold; border:1px solid #a3bfb1; text-align:left; color:#000; padding:0.2em 0.4em;">संत</h2>
 
! style="padding:2px;" | <h2 id="mp-tfa-h2" style="margin:3px; background:#cef2e0; font-size:120%; font-weight:bold; border:1px solid #a3bfb1; text-align:left; color:#000; padding:0.2em 0.4em;">संत</h2>
 
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|[[File:Soordas 2.png|thumb|160x160px]]हिंदी साहित्य में कृष्ण-भक्ति की अजस्र धारा को प्रवाहित करने वाले भक्त कवियों में महाकवि सूरदास का नाम अग्रणी है। उनका जन्म 1478 ईस्वी में मथुरा-आगरा मार्ग पर स्थित रुनकता नामक गांव में हुआ। सूरदास के पिता रामदास गायक थे। सूरदास के जन्मांध होने के विषय में मतभेद है। प्रारंभ में सूरदास आगरा के समीप गऊघाट पर रहते थे। वहीं उनकी भेंट श्री वल्लभाचार्य से हुई और वे उनके शिष्य बन गए। वल्लभाचार्य ने उनको पुष्टिमार्ग में दीक्षित कर के कृष्णलीला के पद गाने का आदेश दिया। सूरदास की मृत्यु गोवर्धन के निकट पारसौली ग्राम में 1580 ईस्वी में हुई।
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'''विस्तार में... [[सूरदास]]'''
हिंदी साहित्य में कृष्ण-भक्ति की अजस्र धारा को प्रवाहित करने वाले भक्त कवियों में महाकवि सूरदास का नाम अग्रणी है। उनका जन्म 1478 ईस्वी में मथुरा-आगरा मार्ग पर स्थित रुनकता नामक गांव में हुआ। सूरदास के पिता रामदास गायक थे। सूरदास के जन्मांध होने के विषय में मतभेद है। प्रारंभ में सूरदास आगरा के समीप गऊघाट पर रहते थे। वहीं उनकी भेंट श्री वल्लभाचार्य से हुई और वे उनके शिष्य बन गए। वल्लभाचार्य ने उनको पुष्टिमार्ग में दीक्षित कर के कृष्णलीला के पद गाने का आदेश दिया। सूरदास की मृत्यु गोवर्धन के निकट पारसौली ग्राम में 1580 ईस्वी में हुई।
 
'''विस्तार में... [[एकलव्य]]'''
 
 
 
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! style="padding:2px;" | <h2 id="mp-dyk-h2" style="margin:3px; background:#cef2e0; font-size:120%; font-weight:bold; border:1px solid #a3bfb1; text-align:left; color:#000; padding:0.2em 0.4em;">प्रवचन</h2>
 
! style="padding:2px;" | <h2 id="mp-dyk-h2" style="margin:3px; background:#cef2e0; font-size:120%; font-weight:bold; border:1px solid #a3bfb1; text-align:left; color:#000; padding:0.2em 0.4em;">प्रवचन</h2>
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! style="padding:2px;" | <h2 id="mp-itn-h2" style="margin:3px; background:#cedff2; font-size:120%; font-weight:bold; border:1px solid #a3b0bf; text-align:left; color:#000; padding:0.2em 0.4em;">दर्शन</h2>
 
! style="padding:2px;" | <h2 id="mp-itn-h2" style="margin:3px; background:#cedff2; font-size:120%; font-weight:bold; border:1px solid #a3b0bf; text-align:left; color:#000; padding:0.2em 0.4em;">दर्शन</h2>
 
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|[[File:Guruji.jpg|thumb|140x140px]]गुरु ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर हैं– 'गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:।' यह बात कई बार हमारे लोक-व्यवहार में सुनने-सुनाने को मिल जाती है। तात्पर्य यह कि शिष्य की अपने गुरु में आस्था इतनी गहरी हो, विश्वास इतना प्रबल हो कि वह उसे मनुष्यरूप में साक्षात ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर माने। 'मानना' एक साधना है! 'न मानना' भी एक साधना है! किन्तु, दोनों में अन्तर भी है, वैसा ही अन्तर जैसा एक आस्तिक और नास्तिक में होता है। इसलिए आज संसार में सारा झंझट मानने और न मानने का ही है। 'मानो तो ईश्वर, न मानो तो पत्थर।' इस तरह से मानना एक व्यक्तिगत भाव है, समष्टिगत कतई नहीं।
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|[[File:Guruji.jpg|thumb|160x160px]]गुरु ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर हैं– 'गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:।' यह बात कई बार हमारे लोक-व्यवहार में सुनने-सुनाने को मिल जाती है। तात्पर्य यह कि शिष्य की अपने गुरु में आस्था इतनी गहरी हो, विश्वास इतना प्रबल हो कि वह उसे मनुष्यरूप में साक्षात ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर माने। 'मानना' एक साधना है! 'न मानना' भी एक साधना है! किन्तु, दोनों में अन्तर भी है, वैसा ही अन्तर जैसा एक आस्तिक और नास्तिक में होता है।
 
 
'''विस्तार में... [[गुरु ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर हैं]]'''
 
'''विस्तार में... [[गुरु ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर हैं]]'''
 
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! style="padding:2px;" | <h2 id="mp-otd-h2" style="margin:3px; background:#cedff2; font-size:120%; font-weight:bold; border:1px solid #a3b0bf; text-align:left; color:#000; padding:0.2em 0.4em;">लेख</h2>
 
! style="padding:2px;" | <h2 id="mp-otd-h2" style="margin:3px; background:#cedff2; font-size:120%; font-weight:bold; border:1px solid #a3b0bf; text-align:left; color:#000; padding:0.2em 0.4em;">लेख</h2>
 
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|[[File:Mother.jpg|thumb|160x160px]]'मातृ देवो भव:' कहकर उपनिषदों ने माँ को सर्वोपरि बतलाया, जबकि मनुस्मृति में माँ को पिता से सौ गुना बड़ा बतलाया गया है। रामचरित मानस में बाबा तुलसीदास कौशल्या माँ के श्रीमुख से कहलवाते हैं— ''"जौ केवल पितु आयषु ताता।/तौ जनि जाहु जानि बडि माता।।" यानी वन गमन की आज्ञा यदि केवल पिता ने दी हो तो मत जाओ। पिता से माता का स्थान बड़ा होता है।''
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|[[File:Mother-0.jpg|thumb|160x160px]]'मातृ देवो भव:' कहकर उपनिषदों ने माँ को सर्वोपरि बतलाया, जबकि मनुस्मृति में माँ को पिता से सौ गुना बड़ा बतलाया गया है। रामचरित मानस में बाबा तुलसीदास कौशल्या माँ के श्रीमुख से कहलवाते हैं— ''"जौ केवल पितु आयषु ताता।/तौ जनि जाहु जानि बडि माता।।" यानी वन गमन की आज्ञा यदि केवल पिता ने दी हो तो मत जाओ। पिता से माता का स्थान बड़ा होता है।''संसार में माँ की समता और किसी से नहीं हो सकती। माता अपने सुखों का त्यागकर दूसरों को सुख देने का पुनीत भाव मन में रखती है। उसका ह्रदय दया, करुणा एवं प्रेम का सागर होता है। प्रथम गुरु माता ही होती है।
 
'''विस्तार में... [[मातृ देवो भव:]]'''
 
'''विस्तार में... [[मातृ देवो भव:]]'''
   
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! style="padding:2px;" | <h2 id="mp-tfp-h2" style="margin:3px; background:#ddcef2; font-size:120%; font-weight:bold; border:1px solid #afa3bf; text-align:left; color:#000; padding:0.2em 0.4em">{{#ifexist:Template:POTD protected/{{#time:Y-m-d}}|आज का चित्र|विशेष चित्र&ensp;<span style="font-size:85%; font-weight:normal;"></span>}}</h2>
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! style="padding:2px;" | <h2 id="mp-tfp-h2" style="margin:3px; background:#ddcef2; font-size:120%; font-weight:bold; border:1px solid #afa3bf; text-align:left; color:#000; padding:0.2em 0.4em">{{#ifexist:Template:POTD protected/{{#time:Y-m-d}}|आज का चित्र|तीर्थ &ensp;<span style="font-size:85%; font-weight:normal;"></span>}}</h2>
 
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|[[File:Vrindavan.jpg|thumb|420x420px]]ब्रज के केन्द्र में स्थित वृन्दावन, जोकि मथुरा से 15 किमी की दूरी पर है, ब्रज क्षेत्र का एक प्राचीन तीर्थ स्थल है। यह तीर्थ स्थल भगवान श्रीकृष्ण की लीला-स्थली रहा है। यहाँ पर श्री कृष्ण और श्री राधारानी के कई सुन्दर मन्दिर हैं— विशेषकर श्री बांके विहारी जी का मंदिर व राधावल्लभ लाल जी का मंदिर। इन मंदिरों के अतिरिक्त यहाँ श्री राधा दामोदर, श्री राधारमण, श्री राधा श्याम सुंदर, निधिवन (हरिदास का निवास कुंज), कालियादह, सेवाकुञ्ज, गोपीनाथ, श्री गोपेश्वर महादेव, पागलबाबा का मंदिर, रंगनाथ जी का मंदिर, श्री कृष्ण प्रणामी मन्दिर, कात्यायनी पीठ, प्रेम मंदिर, श्री कृष्ण-बलराम मन्दिर (इस्कॉन टेम्पल), वैष्णो माता मंदिर, गोरेदाऊ जी मंदिर, चामुण्डा मंदिर आदि दर्शनीय हैं। यहाँ कई भव्य आश्रम— अखण्डानंद सरस्वती आश्रम, आनन्द वृन्दावन आश्रम, उड़िया बाबा आश्रम, श्री हितहरिवंश आश्रम, श्रोतमुनि आश्रम, काठिया बाबा आश्रम, गीता आश्रम, टटिया धाम आश्रम, फोगला आश्रम, बाबा नीब करौरी आश्रम, बैरागी बाबा आश्रम, भक्ति आश्रम, भक्ति निकेतन, भागवत कृपा निकुंज, मानव सेवा संघ, रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम, वात्सल्य ग्राम, वेदांत आश्रम, शरणागत आश्रम, सुदामा कुटी, हनुमान टेकरी आश्रम आदि एवं महत्वपूर्ण पीठ— कात्यायनी शक्ति पीठ, उमा शक्ति पीठ, मलूक पीठ आदि।
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'''विस्तार में... [[वृन्दावन]]'''
 
<br><br><br>वृन्दावन।
 
<br><br>वृन्दावन, जोकि मथुरा से 15 किमी कि दूरी पर है, ब्रज क्षेत्र का एक प्राचीन तीर्थ स्थल है। यह तीर्थ स्थल भगवान श्रीकृष्ण की लीला-स्थली रहा है। यहाँ पर श्री कृष्ण और श्री राधारानी के अनेकों सुन्दर मन्दिर हैं— विशेषकर श्री बांके विहारी जी का मंदिर व राधावल्लभ लाल जी का मंदिर। इन मंदिरों के अतिरिक्त यहाँ श्री राधारमण, श्री राधा दामोदर, श्री राधा श्याम सुंदर, निधि वन, सेवाकुञ्ज, गोपीनाथ, श्री गोपेश्वर महादेव, श्री कृष्ण-बलराम मन्दिर, पागलबाबा का मंदिर, रंगनाथ जी का मंदिर, प्रेम मंदिर, श्री कृष्ण प्रणामी मन्दिर, वैष्णो माता मंदिर, चामुण्डा मंदिर आदि दर्शनीय स्थान हैं।
 
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* टीम भक्तकोश द्वारा संचालित। संपर्क : bhaktkosh@gmail.com
 
 
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[[श्रेणी:मुखपृष्ठ]]
 
[[श्रेणी:मुखपृष्ठ]]
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०७:१३, १८ फ़रवरी २०२१ के समय का अवतरण

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१५५ लेख हिंदी में

संत

Soordas 2
हिंदी साहित्य में कृष्ण-भक्ति की अजस्र धारा को प्रवाहित करने वाले भक्त कवियों में महाकवि सूरदास का नाम अग्रणी है। उनका जन्म 1478 ईस्वी में मथुरा-आगरा मार्ग पर स्थित रुनकता नामक गांव में हुआ। सूरदास के पिता रामदास गायक थे। सूरदास के जन्मांध होने के विषय में मतभेद है। प्रारंभ में सूरदास आगरा के समीप गऊघाट पर रहते थे। वहीं उनकी भेंट श्री वल्लभाचार्य से हुई और वे उनके शिष्य बन गए। वल्लभाचार्य ने उनको पुष्टिमार्ग में दीक्षित कर के कृष्णलीला के पद गाने का आदेश दिया। सूरदास की मृत्यु गोवर्धन के निकट पारसौली ग्राम में 1580 ईस्वी में हुई।

विस्तार में... सूरदास

प्रवचन

Osho
तुम जहाँ हो, वहीं से यात्रा शुरू करनी पड़ेगी। अब तुम बैठे मूलाधार में और सहस्रार की कल्पना करोगे, तो सब झूठ हो जाएगा। फिर इसमें दुखी होने का भी कारण नहीं, क्योंकि जो जहाँ है, वहीं से यात्रा शुरू हो सकती है। इसमें चिंतित भी मत हो जाना कि अरे, दूसरे मुझसे आगे हैं, और मैं पीछे हूँ! दूसरों से तुलना में भी मत पड़ना! नहीं तो और दुखी हो जाओगे। सदा अपनी स्‍थिति को समझो। और अपनी स्‍थिति के विपरीत स्‍थिति को पाने की आकांक्षा मत करो। अपनी स्‍थिति से राजी हो जाओ। तुमसे मैं कहना चाहता हूँ। तुम अपनी नीरसता से राजी हो जाओ। तुम इससे बाहर निकलने की चेष्टा ही छोड़ो। तुम इसमें आसन जमाकर बैठ जाओ। तुम कहो- मैं नीरस हूँ। तो मेरे भीतर फूल नहीं खिलेंगे, नहीं खिलेंगे, तो मेरे भीतर मरुस्थल होगा, मरुद्यान नहीं होगा, नहीं होगा।

विस्तार में... जीवन को उत्सव बना लो

दर्शन

Guruji
गुरु ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर हैं– 'गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:।' यह बात कई बार हमारे लोक-व्यवहार में सुनने-सुनाने को मिल जाती है। तात्पर्य यह कि शिष्य की अपने गुरु में आस्था इतनी गहरी हो, विश्वास इतना प्रबल हो कि वह उसे मनुष्यरूप में साक्षात ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर माने। 'मानना' एक साधना है! 'न मानना' भी एक साधना है! किन्तु, दोनों में अन्तर भी है, वैसा ही अन्तर जैसा एक आस्तिक और नास्तिक में होता है।

विस्तार में... गुरु ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर हैं

लेख

Mother-0
'मातृ देवो भव:' कहकर उपनिषदों ने माँ को सर्वोपरि बतलाया, जबकि मनुस्मृति में माँ को पिता से सौ गुना बड़ा बतलाया गया है। रामचरित मानस में बाबा तुलसीदास कौशल्या माँ के श्रीमुख से कहलवाते हैं— "जौ केवल पितु आयषु ताता।/तौ जनि जाहु जानि बडि माता।।" यानी वन गमन की आज्ञा यदि केवल पिता ने दी हो तो मत जाओ। पिता से माता का स्थान बड़ा होता है।संसार में माँ की समता और किसी से नहीं हो सकती। माता अपने सुखों का त्यागकर दूसरों को सुख देने का पुनीत भाव मन में रखती है। उसका ह्रदय दया, करुणा एवं प्रेम का सागर होता है। प्रथम गुरु माता ही होती है।

विस्तार में... मातृ देवो भव:

तीर्थ  

Vrindavan
ब्रज के केन्द्र में स्थित वृन्दावन, जोकि मथुरा से 15 किमी की दूरी पर है, ब्रज क्षेत्र का एक प्राचीन तीर्थ स्थल है। यह तीर्थ स्थल भगवान श्रीकृष्ण की लीला-स्थली रहा है। यहाँ पर श्री कृष्ण और श्री राधारानी के कई सुन्दर मन्दिर हैं— विशेषकर श्री बांके विहारी जी का मंदिर व राधावल्लभ लाल जी का मंदिर। इन मंदिरों के अतिरिक्त यहाँ श्री राधा दामोदर, श्री राधारमण, श्री राधा श्याम सुंदर, निधिवन (हरिदास का निवास कुंज), कालियादह, सेवाकुञ्ज, गोपीनाथ, श्री गोपेश्वर महादेव, पागलबाबा का मंदिर, रंगनाथ जी का मंदिर, श्री कृष्ण प्रणामी मन्दिर, कात्यायनी पीठ, प्रेम मंदिर, श्री कृष्ण-बलराम मन्दिर (इस्कॉन टेम्पल), वैष्णो माता मंदिर, गोरेदाऊ जी मंदिर, चामुण्डा मंदिर आदि दर्शनीय हैं। यहाँ कई भव्य आश्रम— अखण्डानंद सरस्वती आश्रम, आनन्द वृन्दावन आश्रम, उड़िया बाबा आश्रम, श्री हितहरिवंश आश्रम, श्रोतमुनि आश्रम, काठिया बाबा आश्रम, गीता आश्रम, टटिया धाम आश्रम, फोगला आश्रम, बाबा नीब करौरी आश्रम, बैरागी बाबा आश्रम, भक्ति आश्रम, भक्ति निकेतन, भागवत कृपा निकुंज, मानव सेवा संघ, रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम, वात्सल्य ग्राम, वेदांत आश्रम, शरणागत आश्रम, सुदामा कुटी, हनुमान टेकरी आश्रम आदि एवं महत्वपूर्ण पीठ— कात्यायनी शक्ति पीठ, उमा शक्ति पीठ, मलूक पीठ आदि।

विस्तार में... वृन्दावन

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