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! style="padding:2px;" | <h2 id="mp-tfa-h2" style="margin:3px; background:#cef2e0; font-size:120%; font-weight:bold; border:1px solid #a3bfb1; text-align:left; color:#000; padding:0.2em 0.4em;">प्रमुख लेख</h2>
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! style="padding:2px;" | <h2 id="mp-tfa-h2" style="margin:3px; background:#cef2e0; font-size:120%; font-weight:bold; border:1px solid #a3bfb1; text-align:left; color:#000; padding:0.2em 0.4em;">संत</h2>
 
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|[[File:Soordas 2.png|thumb|160x160px]]हिंदी साहित्य में कृष्ण-भक्ति की अजस्र धारा को प्रवाहित करने वाले भक्त कवियों में महाकवि सूरदास का नाम अग्रणी है। उनका जन्म 1478 ईस्वी में मथुरा-आगरा मार्ग पर स्थित रुनकता नामक गांव में हुआ। सूरदास के पिता रामदास गायक थे। सूरदास के जन्मांध होने के विषय में मतभेद है। प्रारंभ में सूरदास आगरा के समीप गऊघाट पर रहते थे। वहीं उनकी भेंट श्री वल्लभाचार्य से हुई और वे उनके शिष्य बन गए। वल्लभाचार्य ने उनको पुष्टिमार्ग में दीक्षित कर के कृष्णलीला के पद गाने का आदेश दिया। सूरदास की मृत्यु गोवर्धन के निकट पारसौली ग्राम में 1580 ईस्वी में हुई।
| style="color:#000; padding:2px 5px;" |<div id="mp-itn">[[चित्र:Warli2.jpg|left|140px|वर्ली कलाकृति।]]'''नवगीत की परिभाषा'''<br>नवगीत में गीत होना ज़रूरी है। यों तो किसी भी गुनगुनाने योग्य शब्द रचना को [[गीत]] कहने से नहीं रोका जा सकता। किसी एक ढाँचे में रची गयीं समान पंक्तियो वाली ''<nowiki/>''कविता को किसी ताल में लयबद्ध करके गाया जा सकता हो तो वह गीत की श्रेणी में आती है, किन्तु साहित्य के मर्मज्ञों ने गीत और कविता में अन्तर करने वाले कुछ सर्वमान्य मानक तय किये हैं। छन्दबद्ध कोई भी कविता गायी जा सकती है पर उसे गीत नहीं कहा जाता। गीत एक प्राचीन विधा है जिसका हिंदी में व्यापक विकास छायावादी युग में हुआ। गीत में स्थाई और अंतरे होते हैं। स्थाई और अन्तरों में स्पष्ट भिन्नता होनी चाहिये। प्राथमिक पंक्तियां जिन्हें स्थाई कहते हैं, प्रमुख होती है, और हर अन्तरे से उनका स्पष्ट सम्बन्ध दिखाई देना चाहिये। गीत में लय, गति और ताल होती है। इस तरह के गीत में गीतकार कुछ मौलिक नवीनता ले आये तो वह नवगीत कहलाने लगता है।
 
'''विस्तार में... [[नवगीत की परिभाषा]]'''
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'''विस्तार में... [[सूरदास]]'''
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! style="padding:2px;" | <h2 id="mp-dyk-h2" style="margin:3px; background:#cef2e0; font-size:120%; font-weight:bold; border:1px solid #a3bfb1; text-align:left; color:#000; padding:0.2em 0.4em;">क्या आप जानते हैं...</h2>
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! style="padding:2px;" | <h2 id="mp-dyk-h2" style="margin:3px; background:#cef2e0; font-size:120%; font-weight:bold; border:1px solid #a3bfb1; text-align:left; color:#000; padding:0.2em 0.4em;">प्रवचन</h2>
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|[[File:Osho.jpg|thumb|160x160px]]तुम जहाँ हो, वहीं से यात्रा शुरू करनी पड़ेगी। अब तुम बैठे मूलाधार में और सहस्रार की कल्पना करोगे, तो सब झूठ हो जाएगा। फिर इसमें दुखी होने का भी कारण नहीं, क्योंकि जो जहाँ है, वहीं से यात्रा शुरू हो सकती है। इसमें चिंतित भी मत हो जाना कि अरे, दूसरे मुझसे आगे हैं, और मैं पीछे हूँ! दूसरों से तुलना में भी मत पड़ना! नहीं तो और दुखी हो जाओगे। सदा अपनी स्‍थिति को समझो। और अपनी स्‍थिति के विपरीत स्‍थिति को पाने की आकांक्षा मत करो। अपनी स्‍थिति से राजी हो जाओ। तुमसे मैं कहना चाहता हूँ। तुम अपनी नीरसता से राजी हो जाओ। तुम इससे बाहर निकलने की चेष्टा ही छोड़ो। तुम इसमें आसन जमाकर बैठ जाओ। तुम कहो- मैं नीरस हूँ। तो मेरे भीतर फूल नहीं खिलेंगे, नहीं खिलेंगे, तो मेरे भीतर मरुस्थल होगा, मरुद्यान नहीं होगा, नहीं होगा।
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'''विस्तार में... [[जीवन को उत्सव बना लो]]'''
 
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* नवगीत, हिन्दी काव्य-धारा की एक नवीन विधा है।
 
* नवगीत के प्रवर्तक [[सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला']] माने जाते हैं।
 
* नवगीत आंदोलन की स्थापना का श्रेय [[शंभुनाथ सिंह]] को दिया जाता है।
 
* आंचलितकता, लोक गीतात्मकता और लोक गीतात्मक प्रवृत्तियों के साथ साथ नवगीत महानगर और प्रकृति के सामयिक यथार्थ के साथ भी जुड़ा हुआ है।
 
* [[नवगीत दशक-१]] , [[नवगीत दशक-२]], [[नवगीत दशक-३]] नवगीतों के महत्त्वपूर्ण प्रारंभिक संकलन हैं।
 
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! style="padding:2px;" | <h2 id="mp-itn-h2" style="margin:3px; background:#cedff2; font-size:120%; font-weight:bold; border:1px solid #a3b0bf; text-align:left; color:#000; padding:0.2em 0.4em;">नवगीत समाचार-</h2>
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! style="padding:2px;" | <h2 id="mp-itn-h2" style="margin:3px; background:#cedff2; font-size:120%; font-weight:bold; border:1px solid #a3b0bf; text-align:left; color:#000; padding:0.2em 0.4em;">दर्शन</h2>
 
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|[[File:Guruji.jpg|thumb|160x160px]]गुरु ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर हैं– 'गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:।' यह बात कई बार हमारे लोक-व्यवहार में सुनने-सुनाने को मिल जाती है। तात्पर्य यह कि शिष्य की अपने गुरु में आस्था इतनी गहरी हो, विश्वास इतना प्रबल हो कि वह उसे मनुष्यरूप में साक्षात ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर माने। 'मानना' एक साधना है! 'न मानना' भी एक साधना है! किन्तु, दोनों में अन्तर भी है, वैसा ही अन्तर जैसा एक आस्तिक और नास्तिक में होता है।
| style="color:#000; padding:2px 5px;" | <div id="mp-itn">[[File:Unnamed.jpg|left|thumb|140x140px]]नई दिल्ली, १७ फरवरी, २०१५ (मंगलवार), पुस्तक मेले के इतिहास में पहली बार सुबह ११ से १२ बजे के बीच पुस्तक मेले के हॉल सख्या- आठ में नवगीत पर एक विशेष परिचर्चा का आयोजन किया गया। ‘समाज का प्रतिबिम्ब हैं नवगीत’ विषय का प्रवर्तन करते हुए इस परिचर्चा का संचालन नवगीतकार ओमप्रकाश तिवारी ने किया। विषय पर वक्तव्य प्रस्तुत करने वाले अन्य विद्वान थे, वरिष्ठ नवगीतकार एवं समालोचक राधेश्याम बंधु, नवगीतकार एवं समीक्षक आचार्य संजीव सलिल, नवगीतकार डॉ. जगदीश व्योम तथा नवगीताकार सौरभ पांडेय। वक्तव्य के बाद प्रश्नोत्तरी दर्शकों के लिये विशेष आकर्षण रही।
 
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'''विस्तार में... [[गुरु ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर हैं]]'''
'''देखें- पुरालेख [[अन्य समाचार]]'''</div>
 
 
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! style="padding:2px;" | <h2 id="mp-otd-h2" style="margin:3px; background:#cedff2; font-size:120%; font-weight:bold; border:1px solid #a3b0bf; text-align:left; color:#000; padding:0.2em 0.4em;">पुरस्कार और सम्मान...</h2>
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! style="padding:2px;" | <h2 id="mp-otd-h2" style="margin:3px; background:#cedff2; font-size:120%; font-weight:bold; border:1px solid #a3b0bf; text-align:left; color:#000; padding:0.2em 0.4em;">लेख</h2>
 
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|[[File:Mother-0.jpg|thumb|160x160px]]'मातृ देवो भव:' कहकर उपनिषदों ने माँ को सर्वोपरि बतलाया, जबकि मनुस्मृति में माँ को पिता से सौ गुना बड़ा बतलाया गया है। रामचरित मानस में बाबा तुलसीदास कौशल्या माँ के श्रीमुख से कहलवाते हैं— ''"जौ केवल पितु आयषु ताता।/तौ जनि जाहु जानि बडि माता।।" यानी वन गमन की आज्ञा यदि केवल पिता ने दी हो तो मत जाओ। पिता से माता का स्थान बड़ा होता है।''संसार में माँ की समता और किसी से नहीं हो सकती। माता अपने सुखों का त्यागकर दूसरों को सुख देने का पुनीत भाव मन में रखती है। उसका ह्रदय दया, करुणा एवं प्रेम का सागर होता है। प्रथम गुरु माता ही होती है।
| style="color:#000; padding:2px 5px 5px;" | <div id="mp-otd">
 
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'''विस्तार में... [[मातृ देवो भव:]]'''
[[चित्र:Nachiketa.jpg|नचिकेता|80px|left]]नव गठित संस्थान ‘साहित्य की चौपाल’ एवं जनवादी लेखक संघ, छत्तीसगढ़ के संयुक्त तत्वावधान में सिंघई विला, [[भिलाई]] में महा शिवरात्रि २० फरवरी, २०१२ को आयोजित एक भव्य समारोह में बिहार के सुविख्यात जनवादी नव गीतकार [[नचिकेता]] को [[प्रमोद वर्मा काव्य पुरस्कार|प्रमोद वर्मा काव्य सम्मान]]-२०१० से सम्मानित किया गया। उल्लेखनीय है कि प्रथम प्रमोद वर्मा काव्य सम्मान से चौथे सप्तक के कवि एवं राष्ट्रीय हिंदी अकादमी के अध्यक्ष [[डॉ. स्वदेश भारती]] को मई, २००९ में सम्मानित किया गया था। प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान के अध्यक्ष व पुलिस महानिदेशक, होमगार्डस् सुकवि श्री विश्वरंजन की अध्यक्षता में सम्पन्न इस आयोजन में छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के अध्यक्ष पं. दानेश्वर प्रसाद शर्मा, सुप्रसिद्ध समालोचक श्री ओमराज, देहरादून एवं वरिष्ठ कवि अशोक शर्मा विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे।
 
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'''देखें- पुरालेख [[पुरस्कार समाचार]]'''
 
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! style="padding:2px;" | <h2 id="mp-tfp-h2" style="margin:3px; background:#ddcef2; font-size:120%; font-weight:bold; border:1px solid #afa3bf; text-align:left; color:#000; padding:0.2em 0.4em">{{#ifexist:Template:POTD protected/{{#time:Y-m-d}}|आज का चित्र|विशेष चित्र&ensp;<span style="font-size:85%; font-weight:normal;"></span>}}</h2>
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! style="padding:2px;" | <h2 id="mp-tfp-h2" style="margin:3px; background:#ddcef2; font-size:120%; font-weight:bold; border:1px solid #afa3bf; text-align:left; color:#000; padding:0.2em 0.4em">{{#ifexist:Template:POTD protected/{{#time:Y-m-d}}|आज का चित्र|तीर्थ &ensp;<span style="font-size:85%; font-weight:normal;"></span>}}</h2>
 
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|[[File:Vrindavan.jpg|thumb|420x420px]]ब्रज के केन्द्र में स्थित वृन्दावन, जोकि मथुरा से 15 किमी की दूरी पर है, ब्रज क्षेत्र का एक प्राचीन तीर्थ स्थल है। यह तीर्थ स्थल भगवान श्रीकृष्ण की लीला-स्थली रहा है। यहाँ पर श्री कृष्ण और श्री राधारानी के कई सुन्दर मन्दिर हैं— विशेषकर श्री बांके विहारी जी का मंदिर व राधावल्लभ लाल जी का मंदिर। इन मंदिरों के अतिरिक्त यहाँ श्री राधा दामोदर, श्री राधारमण, श्री राधा श्याम सुंदर, निधिवन (हरिदास का निवास कुंज), कालियादह, सेवाकुञ्ज, गोपीनाथ, श्री गोपेश्वर महादेव, पागलबाबा का मंदिर, रंगनाथ जी का मंदिर, श्री कृष्ण प्रणामी मन्दिर, कात्यायनी पीठ, प्रेम मंदिर, श्री कृष्ण-बलराम मन्दिर (इस्कॉन टेम्पल), वैष्णो माता मंदिर, गोरेदाऊ जी मंदिर, चामुण्डा मंदिर आदि दर्शनीय हैं। यहाँ कई भव्य आश्रम— अखण्डानंद सरस्वती आश्रम, आनन्द वृन्दावन आश्रम, उड़िया बाबा आश्रम, श्री हितहरिवंश आश्रम, श्रोतमुनि आश्रम, काठिया बाबा आश्रम, गीता आश्रम, टटिया धाम आश्रम, फोगला आश्रम, बाबा नीब करौरी आश्रम, बैरागी बाबा आश्रम, भक्ति आश्रम, भक्ति निकेतन, भागवत कृपा निकुंज, मानव सेवा संघ, रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम, वात्सल्य ग्राम, वेदांत आश्रम, शरणागत आश्रम, सुदामा कुटी, हनुमान टेकरी आश्रम आदि एवं महत्वपूर्ण पीठ— कात्यायनी शक्ति पीठ, उमा शक्ति पीठ, मलूक पीठ आदि।
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'''विस्तार में... [[वृन्दावन]]'''
 
[[चित्र:Shambhunath.jpg|left|400px|इंदिरा गाँधी के साथ नवगीतकार]]
 
<br><br><br>नवगीतकार प्रधानमंत्री के साथ पहले नवगीत दशक के विमोचन के समय १९८२ में।
 
<br><br>चित्र में दाएँ से- अशोक वाजपेयी (आकाशवाणी के तत्कालीन समाचारवाचक), [[देवेन्द्र कुमार]], [[माहेश्वर तिवारी]], श्रीकृष्ण (प्रकाशक), [[उमाकन्त मालवीय]], [[भगवान स्वरूप सरस]], [[शम्भुनाथ सिंह]], श्रीमती श्रीकृष्ण, सुरेश, शम्भुनाथ सिंह जी की साली, इन्दिरा गांधी, यशपाल जैन, [[राम सेंगर]], [[राजेन्द्र गौतम]], खंडेलवाल (सांसद), [[सोम ठाकुर]], [[शिवबहादुर सिंह भदौरिया]], तथा पद्मश्री वीरेन्द्र प्रभाकर (छायाकार)।
 
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* टीम भक्तकोश द्वारा संचालित। संपर्क : bhaktkosh@gmail.com
 
 
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[[श्रेणी:मुखपृष्ठ]]
 
[[श्रेणी:मुखपृष्ठ]]
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०७:१३, १८ फ़रवरी २०२१ के समय का अवतरण

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१५५ लेख हिंदी में

संत

Soordas 2
हिंदी साहित्य में कृष्ण-भक्ति की अजस्र धारा को प्रवाहित करने वाले भक्त कवियों में महाकवि सूरदास का नाम अग्रणी है। उनका जन्म 1478 ईस्वी में मथुरा-आगरा मार्ग पर स्थित रुनकता नामक गांव में हुआ। सूरदास के पिता रामदास गायक थे। सूरदास के जन्मांध होने के विषय में मतभेद है। प्रारंभ में सूरदास आगरा के समीप गऊघाट पर रहते थे। वहीं उनकी भेंट श्री वल्लभाचार्य से हुई और वे उनके शिष्य बन गए। वल्लभाचार्य ने उनको पुष्टिमार्ग में दीक्षित कर के कृष्णलीला के पद गाने का आदेश दिया। सूरदास की मृत्यु गोवर्धन के निकट पारसौली ग्राम में 1580 ईस्वी में हुई।

विस्तार में... सूरदास

प्रवचन

Osho
तुम जहाँ हो, वहीं से यात्रा शुरू करनी पड़ेगी। अब तुम बैठे मूलाधार में और सहस्रार की कल्पना करोगे, तो सब झूठ हो जाएगा। फिर इसमें दुखी होने का भी कारण नहीं, क्योंकि जो जहाँ है, वहीं से यात्रा शुरू हो सकती है। इसमें चिंतित भी मत हो जाना कि अरे, दूसरे मुझसे आगे हैं, और मैं पीछे हूँ! दूसरों से तुलना में भी मत पड़ना! नहीं तो और दुखी हो जाओगे। सदा अपनी स्‍थिति को समझो। और अपनी स्‍थिति के विपरीत स्‍थिति को पाने की आकांक्षा मत करो। अपनी स्‍थिति से राजी हो जाओ। तुमसे मैं कहना चाहता हूँ। तुम अपनी नीरसता से राजी हो जाओ। तुम इससे बाहर निकलने की चेष्टा ही छोड़ो। तुम इसमें आसन जमाकर बैठ जाओ। तुम कहो- मैं नीरस हूँ। तो मेरे भीतर फूल नहीं खिलेंगे, नहीं खिलेंगे, तो मेरे भीतर मरुस्थल होगा, मरुद्यान नहीं होगा, नहीं होगा।

विस्तार में... जीवन को उत्सव बना लो

दर्शन

Guruji
गुरु ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर हैं– 'गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:।' यह बात कई बार हमारे लोक-व्यवहार में सुनने-सुनाने को मिल जाती है। तात्पर्य यह कि शिष्य की अपने गुरु में आस्था इतनी गहरी हो, विश्वास इतना प्रबल हो कि वह उसे मनुष्यरूप में साक्षात ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर माने। 'मानना' एक साधना है! 'न मानना' भी एक साधना है! किन्तु, दोनों में अन्तर भी है, वैसा ही अन्तर जैसा एक आस्तिक और नास्तिक में होता है।

विस्तार में... गुरु ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर हैं

लेख

Mother-0
'मातृ देवो भव:' कहकर उपनिषदों ने माँ को सर्वोपरि बतलाया, जबकि मनुस्मृति में माँ को पिता से सौ गुना बड़ा बतलाया गया है। रामचरित मानस में बाबा तुलसीदास कौशल्या माँ के श्रीमुख से कहलवाते हैं— "जौ केवल पितु आयषु ताता।/तौ जनि जाहु जानि बडि माता।।" यानी वन गमन की आज्ञा यदि केवल पिता ने दी हो तो मत जाओ। पिता से माता का स्थान बड़ा होता है।संसार में माँ की समता और किसी से नहीं हो सकती। माता अपने सुखों का त्यागकर दूसरों को सुख देने का पुनीत भाव मन में रखती है। उसका ह्रदय दया, करुणा एवं प्रेम का सागर होता है। प्रथम गुरु माता ही होती है।

विस्तार में... मातृ देवो भव:

तीर्थ  

Vrindavan
ब्रज के केन्द्र में स्थित वृन्दावन, जोकि मथुरा से 15 किमी की दूरी पर है, ब्रज क्षेत्र का एक प्राचीन तीर्थ स्थल है। यह तीर्थ स्थल भगवान श्रीकृष्ण की लीला-स्थली रहा है। यहाँ पर श्री कृष्ण और श्री राधारानी के कई सुन्दर मन्दिर हैं— विशेषकर श्री बांके विहारी जी का मंदिर व राधावल्लभ लाल जी का मंदिर। इन मंदिरों के अतिरिक्त यहाँ श्री राधा दामोदर, श्री राधारमण, श्री राधा श्याम सुंदर, निधिवन (हरिदास का निवास कुंज), कालियादह, सेवाकुञ्ज, गोपीनाथ, श्री गोपेश्वर महादेव, पागलबाबा का मंदिर, रंगनाथ जी का मंदिर, श्री कृष्ण प्रणामी मन्दिर, कात्यायनी पीठ, प्रेम मंदिर, श्री कृष्ण-बलराम मन्दिर (इस्कॉन टेम्पल), वैष्णो माता मंदिर, गोरेदाऊ जी मंदिर, चामुण्डा मंदिर आदि दर्शनीय हैं। यहाँ कई भव्य आश्रम— अखण्डानंद सरस्वती आश्रम, आनन्द वृन्दावन आश्रम, उड़िया बाबा आश्रम, श्री हितहरिवंश आश्रम, श्रोतमुनि आश्रम, काठिया बाबा आश्रम, गीता आश्रम, टटिया धाम आश्रम, फोगला आश्रम, बाबा नीब करौरी आश्रम, बैरागी बाबा आश्रम, भक्ति आश्रम, भक्ति निकेतन, भागवत कृपा निकुंज, मानव सेवा संघ, रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम, वात्सल्य ग्राम, वेदांत आश्रम, शरणागत आश्रम, सुदामा कुटी, हनुमान टेकरी आश्रम आदि एवं महत्वपूर्ण पीठ— कात्यायनी शक्ति पीठ, उमा शक्ति पीठ, मलूक पीठ आदि।

विस्तार में... वृन्दावन

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