
श्री मलूक पीठ की स्थापना संत-शिरोमणि मलूक दास जी (1574 से 1682) के नाम से वृंदावन के वंशीवट (जमुना पुलीन) क्षेत्र में हुई। बाबा मलूकदास का जन्म लाला सुंदरदास खत्री के घर वैशाख कृष्ण 5 संवत् 1631 में कड़ा जिला इलाहाबाद में हुआ। इनकी मृत्यु 108 वर्ष की अवस्था में संवत् 1739 में हुई। ये औरंगजेब के समय में थे।
मलूक दास जी की गद्दियाँ कड़ा, जयपुर, गुजरात, मुलतान, पटना, नेपाल और काबुल तक में कायम हुईं। मलूक पीठ में संत मलूक दास की जाग्रत समाधि है। इन्हीं का यह प्रसिद्ध दोहा है—
अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम।
दास मलूका कहि गए, सबके दाता राम।।

पहले यह स्थान श्री मलूक दास जी अखाड़ा नाम से जाना जाता था। इस जगह पर श्री मलूक दास जी लगभग 2500 संतों के साथ ठाकुर सेवा करते थे। वर्तमान में श्री मलूक पीठ के पीठाधीश्वर तत्वज्ञानी संत श्री राजेंद्र दास जी महाराज हैं और उनके नेतृत्व में यह पीठ सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार कर रही है।