मन मैं रह्यौ नाहिंन ठौर।
नंदनंदन अछत कैसैं, आनियै उर और।
चलत चितवत दिवस जागत, स्वप्न सोवत राति।
हृदय तैं वह मदन मूरति, छिन न इत उत जाति।
कहत कथा अनेक ऊधौ, लोग लोभ दिखाइ।
कह करौं मन प्रेम पूरन, घट न सिंधु समाइ।
स्याम गात सरोज आनन, ललित मदु मुख हास।
सूर इनकैं दरस कारन, मरत लोचन प्यास।।